हमें किसी रोग की जानकारी उसके लक्षणों को देखकर ही होती है। रोगों को पहचानने
के लिए निम्नलिखित बातों का ध्यान रखने से सहायता मिलती है।
We know about any
disease by observing the symptoms of the disease. Following mentioned tips help
us to identify diseases.
1.
हमारे
शरीर के किस अंग में रोग उत्पन्न हुआ है।
Which body organ is in the grip of disease?
2.
हमारे
शरीर में विभिन्न रोगों के उत्पन्न होने के प्रमुख कारण क्या-क्या थे।
What are the main causes of different diseases appeared in the body.
3.
रोग
से पीड़ित व्यक्ति का शरीर रोग से पीड़ित होने से पहले किस अवस्था में था।
In which condition the patient was before
the appearance of disease.
4.
किसी
रोग से पीड़ित होने के बाद उस रोग के असाध्य होने का क्या कारण था।
What was the cause because of which the disease changed into incurable
disease?
5.
रोग
के कौन-कौन से लक्षण हैं तथा उससे हमारे शरीर को क्या कष्ट होता है।
What are the causes of disease and what kinds of troubles the body faced?
6.
रोगी
के परिवार के बारे जानकारी लेने से रोग को पहचानने में आसानी रहती है। इसके
अतिरिक्त नाड़ी, आंख, मल-मूत्र, यकृत, प्लीहा, फेफडे़, हृदय और चेहरे की आकृति से तथा थर्मामीटर की सहायता
से भी रोगों को पहचानने में मदद मिलती है। जहां तक हो सके उपरोक्त बातों पर विशेष
ध्यान देकर रोग को पहचानना चाहिए। किसी भी रोग की सही पहचान होना उस रोग की आधी
चिकित्सा होती है।
Information about the patient’s family proves beneficial to identify the
disease. Besides, checks up of nerve, eyes, stool and urine, spleen, lungs, heart
and shape of face help us to examine the disease. Thermometer is also very
beneficial. Use above mentioned things as far as possible to identify diseases.
Adequate idnentification of any disease is half treatment of that disease.
7.
उपद्रव
वे होते हैं जो किसी रोग के बीच तथा उसके अंत में उत्पन्न हो जाते हैं। ये असली
रोग नहीं होते हैं। यह तो उस रोग का उपद्रव होता है अथवा उनका परिणाम होता है जैसे, ठंड
से उत्पन्न बुखार में प्लीहा का बढ़ जाना, टी.बी. के रोग में बुखार का होना, अथवा
चेचक के बाद आंखों का खराब हो जाना।
Turmoils are those which appear in the middle or in the end of any disease.
This is the turmoil of the disease or result of the disease as enlargement of
spleen because of fever caused due to cold, fever in the disease namedtuberculosis or problem in the eyes after the appearance of small pox.
रोगों के परिणाम के भविष्य की सूचना :
Information of
future about the consequences of diseases:
किसी भी रोग के परिणाम के बारे में भविष्यवाणी करना अत्यंत
कठिन कार्य होता है कि इस रोग का क्या परिणाम होगा? अर्थात रोग साध्य होगा अथवा असाध्य होगा। रोग के
लक्षण और रोगी के शरीर की दशा को देखकर यह अनुमान लगाया जा सकता है कि आगे चलकर
रोग का परिणाम क्या होगा?
Forecast about the
consequence of any disease is a very typical job. To know about the result of
any disease is hard. None can tell whether the disease will be curable or
incurable. One can guess about the consequences of disease in future by
observing the symptoms of disease or condition of the body.
चिकित्सा :
रोगों को नष्ट करने के लिए जो उपाय किए जाते हैं उसको
चिकित्सा कहते हैं। यह भी कई प्रकार की होती है।
Treatment:
Formulae, which are used to cure any disease, are the parts of
treatment. There are several kinds of treatment.
1.
प्रीवेण्टिव
ट्रीटमेंट : यह वह चिकित्सा होती
है जो किसी भी रोग के उत्पन्न होने से पहले की जाती है जैसे फसली बुखार, महामारी, हैजा, टिटनेस, काली
खांसी, टायफाइड (दिमागी बुखार) और पोलियों से बचाव के लिए
रोग निरोधक टीके (वैक्सीन) का उपयोग किया जाता है।
Preventive treatment:
This is the treatment which is adopted before the appearance of any disease
as inoculation of vaccine in seasonal fever, plague, cholera, tetanus, whooping
cough, typhoid (brain fever) and polio is used.
2.
क्योरेटिव
ट्रीटमेंट : यह वह चिकित्सा होती
है जो किसी रोग को नष्ट करने में प्रयोग की जाती है। इस चिकित्सा में रोगी की स्थिति, लक्षण, आदि
औषधियों के गुण तथा प्रयोग विधि को अच्छी प्रकार से जानने की आवश्यकता होती है।
इसे रेशनल ट्रीटमेंट के नाम से भी जाना जाता है। यदि उपरोक्त दोनों बातों का ध्यान
दिये हुए ही किसी रोग की चिकित्सा की जाए तो कभी-कभी लाभ मिल जाता है क्योंकि यह
केवल अनुभव पर निर्भर करता है। वैसे तो ऐसा करने से प्राय: हानि ही होती है
क्योंकि अनुभव होने के साथ-साथ चिकित्सा की भी जानकारी होनी चाहिए।
Curative treatment:
This is the treatment which is used to cure any disease. There is a need to
observe the condition of the patient, symptoms of the disease, characteristics
of the medicines and method of taking medicine. It is also known by the name of
rational treatment. If treatment of any patient is done according to above
mentioned way, it proves beneficial occasionally because everything depends on
experience. Often, it proves harmful because experience demands the deep
knowledge of treatment too.
3.
पैलिएटिव
ट्रीटमेंट : यह वह चिकित्सा है
जिसमें केवल असाध्य रोगों के कष्ट की चिकित्सा की जाती है, परन्तु
मुख्य रोग नष्ट नहीं होता है।
Palliative treatment:
This is the treatment which cures only the troubles of incurable disease
but in it the main disease is not cured.
4.
एक्सपेक्टेन्ट
ट्रीटमेंट : एक्सपेक्टेन्ट चिकित्सा
में रोगी को कोई भी औषधि सेवन के लिए नहीं दी जाती है। यदि दी भी जाती है तो वह भी
कम से कम मात्रा में। प्रकृति स्वयं ही उस रोग का निवारण करती है।
Expectant treatment: No medicine is given to the patient in this
disease. If any medicine is given, a little dose is given to the patient.
Nature itself cures the disease.
5.
डायटेटिक
ट्रीटमेंट : यह चिकित्सा केवल
भोजन के परिवर्तन से ही की जाती है।
Dietetic treatment:
This treatment is done only by changing the diet.
6.
हायजेनिक
ट्रीटमेंट : यह चिकित्सा केवल
आरोग्य सम्बंधी सिद्धांतों पर निर्भर करती है।
Hygienic treatment:
This treatment is based upon the principles related to health.
7.
क्लाईमैटिक
ट्रीटमेंट : यह चिकित्सा वातावरण, प्रकृति
और परिवर्तन पर निर्भर करती है।
Climatic treatment:
This treatment depends over the atmosphere, nature
and changes.
">
It should not be understood that the child is hungry whenever the child weeps. All the children who suck mother milk are healthy and strong physically later on. The mother should feed her milk to the child until the child crosses 12 moths. The mother should pay too much attention on her diet and take simple and nutritive meal.
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