हमारे शरीर में विभिन्न प्रकार के विकार होते हैं जिनके रूप और लक्षण अलग-अलग
होते हैं इनका विभाजन आयुर्वेद में चार श्रेणियों में किया गया है।
There are different
kinds of disorders in our body which have different kinds of shapes and
symptoms. These disorders have been classified into four categories.
शरीर में विजातीय द्रव्यों के कारण जो रोग होते हैं वे शारीरिक रोग के
अन्तर्गत आते हैं जैसे बुखार आदि।
All the diseases
which take birth due to the presence of heterogeneous liquids are counted as
physical diseases as fever etc.
अभिघात से जो पीड़ाएं होती हैं, उन्हें आगन्तुक रोग कहते हैं जैसे पेड़ से गिरना दुर्घटना
आदि।
Troubles which take
birth due to abhghat are called aaguntak disease as falling from the tree,
accident etc.
क्रोध, शोक, भय
आदि रोगों को निमित्तक मानसिक रोग कहते हैं।
Anger, grief, fear and other diseases
are called mental diseases.
भूख, प्यास, बूढ़ा होना तथा मृत्यु को प्राप्त होना `स्वाभाविक` रोग
के अन्तर्गत आते हैं।
Hunger, thirst, fear, death etc are
counted as common diseases.
हमारे शरीर के आन्तरिक भाग में विजातीय द्रव्यों की उपस्थिति के परिणामस्वरूप
जितने भी प्रकार के रोग होते हैं उन्हें दो भागों में विभाजित किया जा सकता है।
All the diseases
which take birth due to the presence of heterogeneous liquids can be divided
into two parts.
- तीव्र रोग।
- मंद या जीर्ण रोग।
- Fast disease
- Chronic disease
तीव्र
रोग :
Fast disease:
जिस रोग में अधिक तीव्रता हो उसे तीव्र रोग कहेंगे
जैसे हैजा चेचक दस्त आदि। ये रोग जितनी भी अधिक तेजी से आते हैं। उचित चिकित्सा
करने से उतनी ही तेजी से जल्दी ही चले जाते हैं। तीव्र रोग अपना उपचार स्वयं होते
हैं। जब हमारे शरीर के पाचनसंस्थान में अधिक मल एकत्र हो जाता है तो उसका निष्कासन
तीव्र रोगों के रूपों में होने लगता है जो कुछ ही दिनों में रहकर अर्थात उस संचित
मल को शरीर से बाहर निकालकर अपने आप ठीक हो जाते हैं तथा शरीर का विकार अपने आप ही
ठीक हो जाता है। तीव्र रोग बच्चों और युवाओं को अधिक होते हैं जिनकी जीवनीशक्ति
प्रबल होती है, उन्हें विशेष रूप से प्राप्त होते हैं। शरीर में मल
के निष्कासन में किसी प्रकार का अवरोध होने पर तीव्र रोग शरीर में अधिक समय तक बने
रहते हैं। तीव्र रोगों में उपवास और व्यायाम बहुत अधिक लाभदायक सिद्ध होते हैं।
यही कारण है कि तीव्र रोग के रोगी को चारपाई पर पड़ जाने के लिए प्रकृति विवश करती
है। इसके साथ ही भूख को भी नष्ट करती है। तीव्र रोग का होना इस बात का प्रमाण होता
है कि शरीर में जीवनीशक्ति सजग और सचेत है।
A disease which is
fast is called fast disease as cholera, chicken pox, loose motions etc. these
diseases disappear as soon as they appear in the body of a human being. Fast
diseases have its treatment. When excessive stool gathers in the digestion
system of our body, it starts to expel out from the body in the form of fast
diseases. Such diseases remain in the body for some days and thereafter they
disappear themselves. The victim becomes healthy without the use of medicines.
Children and youngsters become the victim of fast diseases. Besides it, all the
people whose vital power is strong suffer from such kinds of diseases. Such
kinds of diseases sustain for long time if there is any kind of obstruction in
the excretion of stool. Fast and exercise prove very beneficial in fast
diseases. This is the reason that nature compels to the patient of such kinds
of diseases to catch the cot. These diseases reduce the hunger of the patients.
Appearance of fast diseases in the body hints that vital power of the body is
strong and active.
विशेषज्ञों के अनुसार तीव्र रोगों की पांच अवस्थाएं होती
हैं-
There are five
stages of fast diseases according to specialists.
प्रथम अवस्था-
प्रथम अवस्था को हम तीव्र रोगों की तैयारी की अवस्था
कह सकते हैं। हमारे शरीर या उसके किसी भाग में मल के एकत्र हो जाने से शरीर में
उत्तेजना पैदा होती है। इसके बाद यहीं एकत्रित मल धीरे-धीरे करके रोगों को उत्पन्न
करता है। रोगों को उत्पन्न होने में कुछ मिनट से लेकर कई वर्षों तक का समय लग सकता
है। इस दौरान शरीर में विभिन्न रोगों को उत्पन्न करने में सहायक मल, विष अथवा रोगाणु आदि उत्पन्न होकर एकत्रित होते रहते हैं।
First stage:
First stage of fast diseases can be
called the preparation of these diseases. Excitement produces in our body if
stool gathers in our body or any portion of the body. This stool produces
diseases gradually later on. Diseases can take from one minute to many years in
the appearance of diseases. During this period, stool, poison and bacteria keep
on gathering into the body these things are helpful in the appearance of
diseases.
दूसरी अवस्था-
तीव्र रोग की दूसरी अवस्था में रोग का रूप और लक्षण
पहले से अधिक भयानक हो जाते हैं जिसके कारण रोगी को अधिक कष्ट उठाना पड़ता है। इसकी
प्रतिक्रिया स्वरूप हमारे शरीर में तनाव, सूजन, सुर्खी
और बुखार बढ़ जाता है। इससे
रोगी धीरे-धीरे शारीरिक रूप से कमजोर होता चला जाता है तथा रोग के बढ़ने के कारण
अधिक पीड़ा और दर्द को सहन करना पड़ता है।
Second stage: Form and symptoms of the fast disease become very danger in the second
stage of fast disease because of which the patient has to face too much
trouble. In this stage, depression, swelling, redness and fever increase in the
form of reaction. Due to this reason, the patient keeps on becoming weak
physically. The patient has to face too much pain and trouble in this
condition.
तीसरी अवस्था-
तीव्र रोग की तीसरी अवस्था में रोगाक्रान्त स्थान के
कण नष्ट होने लगते हैं। जिसके कारण घाव हो जाता है तथा मवाद के साथ रक्त बहने लगता
है जैसाकि फोड़ा होने की दशा में होता है। पसीना, पेशाब के साथ विष निकलने
लगता है, सांस से दुर्गंध आने लगती है, दस्त
होते हैं, उल्टी भी हो सकती है। मल निकलने के इस प्रयत्न में
शरीर के कुछ उपयोगी तत्वों का भी मल के साथ ही निकल जाना स्वाभाविक होता है जिससे
दुर्बल शरीर और भी अधिक शिथिल हो जाता है। मस्तिष्क भी काम करना बंद कर देता है।
यही रोग की सबसे उग्र दशा होती है। यदि इस अवस्था में शरीर की जीवनीशक्ति कमजोर पड़
जाती है तो रोगी की मृत्यु तक हो सकती है। यदि जीवनीशक्ति प्रबल हो जाती है तो
संचित मल को निष्कासित करने में सफल होकर संकट की घड़ी को पार कर जाता है तथा रोगी
को रोगमुक्त कर देती है। कुशल चिकित्सक इसी अवस्था में जीवनीशक्ति को उचित उपचार
द्वारा सहायता पहुंचाकर यश और कीर्ति का भागीदार बनता है।
Third stage: bacteria
of the fast disease have to decay in the third stage of the fast disease
because of which wounds produce and pus flows with blood as happens in the
condition of boils. Poison has to expel out from the body with sweat and urine.
The patient suffers from stinking breath, loose motions and vomiting. Some
essential elements come out from the body along with the excretion of stool
because it is common. Due to this reason, body of the victim becomes weak.
Brain of the patient stops its working. This is the prime stage of the disease.
If vital power of the body becomes weak in this stage, the patient can become
the victim of death too. if vital power increases, it help to expel out the
stool from the body and the patient avoids from danger stage. This way, the
patient becomes healthy. A well qualified doctor enhances the vital power of
the patient and gets name and fame.
चौथी अवस्था-
तीव्र रोग की चौथी अवस्था में रोग के नष्ट होने की
शुरुआत होती है। इससे रोग धीरे-धीरे करके नष्ट हो जाता है, शरीर
की सूजन, तनाव और सुर्खी आदि
सभी कम होने लगती हैं, बुखार कम हो जाता है, सांस से आने वाली
दुर्गंध समाप्त हो जाती है, दस्त और उल्टी भी ठीक हो जाती है तथा स्वाभाविक रूप
से पसीना आने लगता है और शरीर को थो़ड़ा-से बल का अनुभव होने लगता है।
Fourth stage: The disease starts to decay in the fourth stage of the fast disease. The
disease disappears slowly and swelling, contraction and redness start to
reduce. Fever of the patient reduces and he gets rid of stinking breath in this
stage. Besides it, he gets rid of loose motions and vomiting too. Sweat
perspires naturally from the body and the body feels a little strength.
पांचवी अवस्था-
तीव्र रोग की पांचवी तथा अंतिम अवस्था में रोग पूरी
तरह से नष्ट हो जाता है। इस दौरान शरीर में एकत्रित हुआ पूरा मल साफ हो जाता है और
जो भी उपयोगी तत्व नष्ट हुए तत्व होते हैं,
वे धीरे-धीरे पुन: बनने लगते
हैं तथा थोड़े ही दिनों में शरीर हृष्ट-पुष्ट हो जाता है।
Fifth stage: The disease disappears completely from the body in the fifth and final
stage of the fast diseases. During this period total stool expels out
from the body completely and essential elements which have been destroyed
during illness start to produce again. In this way, the patient becomes healthy
completely.
जीर्ण रोग (पुराना रोग) :
शरीर में उपस्थिति मल की उग्र दशा को तीव्र रोग या
उग्र रोग के नाम से जाना जाता है। उसी तरह उसके भीतर प्रवेश करने, अनिष्ट
दशा उत्पन्न करने तथा धीरे-धीरे करके थोड़े से कष्ट के साथ अधिक समय तक शरीर में
पड़े रहने की दशा का नाम `जीर्णरोग` है। शरीर में तीव्र रोगों को दबाते रहने से दमा का
रोग भी हो सकता है तथा उसी प्रकार बुखार के रोग को दबाते रहने से भी टी.बी. का रोग
हो सकता है। तीव्र रोगों के लक्षणों को दबा देने से उस समय तो अच्छा लगता है।
किन्तु शरीर के अंदर से निकलने वाली गंदगी शरीर में रुकी रह जाती है और जीर्ण
रोगों को उत्पन्न करती है। जीर्ण रोगों से ग्रस्त रोगी के शरीर की जीवनीशक्ति
कमजोर हो जाती है।
Chronic disease:
Acrimonious
stage of the stool in the body is known by the name of fast disease. In the
same way, insertion of the disease, appearance of worse stage and presence of
disease in the body for long time with troubles is called chronic disease.
Suppression of fast diseases in the body may become the cause of asthma. A
person suffers from tuberculosis if fever is suppressed. It seems good if
symptoms of fast diseases vanish for some time after the use of medicines but
filth of the body gathers into the body and becomes the cause of chronic
diseases. Vital power of the patients of chronic diseases becomes weak.
तीव्र रोगों में कष्ट अधिक सहन करने पड़ते हैं लेकिन
जीर्णरोगों में तीव्र लक्षणों के न होते हुए भी जीवन अत्यंत कष्टकारी और नीरस हो
जाता है। जीर्ण रोगों को दूर करने के लिए विचारों की दृढ़ता, शुद्धता, धैर्य
तथा चिकित्सकों पर विश्वास रहने की अधिक आवश्यकता होती है। प्राकृतिक चिकित्सा
करने से जीर्ण रोग काफी अधिक समय में जड़ सहित नष्ट हो जाते हैं।
The patient has to
face too much obstacles in fast diseases but the life becomes sententious and
troublesome in chronic disease in spite of the absence of fast symptoms. Firm
determination, purity, patience and faith on doctors are very essential to get
rid of such kinds of diseases. Chronic diseases disappear by root by the
treatment of nature therapy.
शरीर के निरोग के होने के लक्षण :
Symptoms of healthy
body after illness:
प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार यदि किसी व्यक्ति का
शरीर पूर्ण रूप से विकारों और विजातीय द्रव्यों से रहित होता है तो वह निरोगी होता
है। स्वस्थ व्यक्ति का शरीर, मन और आत्मा तीनों ही स्वस्थ होते हैं तथा शरीर की
समस्त इन्द्रियां और अंग सुचारु तरीके से अपना-अपना कार्य करते हैं। एक स्वस्थ
व्यक्ति की आंखों में निर्मलता और शांति झलकती रहती है और उसकी मुखाकृति की रेखाओं
में तोड़-मरोड़ नहीं होती। स्वस्थ शरीर में भोजन का पाचन आसानी से होता है जिससे मल
आसानी से साफ होता है। प्रकृति के नियमों का पालन करने वाले गाय, बैल, भैंस
आदि जब भी मल का त्याग करते हैं तो उनका गुदा धीरे-धीरे फैलता है और वे आसानी से
मल का त्याग करते हैं, उसकी गुदा पर मल का कोई भी भाग चिपका नहीं रहता है।
ठीक उसी प्रकार मनुष्य का मल और उसका त्याग भी इसी तरह से होना चाहिए। यदि किसी
व्यक्ति को मल त्यागने में काफी देर तक बैठना, जोर लगाना, मल
का कठोर या पतला हो तो यह उसकी अस्वस्थता को प्रदर्शित करता है। निरोगी व्यक्ति
हमेशा ही प्रसन्न रहता है।
According to nature
therapists, if body of a person is free from all kinds of disorders and
heterogeneous liquids, he will be called as a healthy person. Body, soul and
mind are in good condition of a healthy person and all the senses of the body
work properly. Freshness and calmness keep on appearing in the eyes of a
healthy man and there are no sad impressions on his face. Food digests easily
in healthy body and he excretes stool easily. Anus of the followers of nature
rules as cow, ox, buffalo etc stretches slowly and they excrete stool easily
and no single bit of stool remains on the anus. In the same way, the man should
excrete stool. If a man has to press and sit for long time at the time of
excretion of stool, it shows the unhealthiness of the person. Besides, too much
hard and watery stool is the symbol of unhealthiness. A healthy person remains
happy forever.
हृदय स्वयं ही इस बात का सूचक होता है कि शरीर में
किसी भी प्रकार का कोई रोग नहीं है और वह शतप्रतिशत निरोग है।
Heart is the informer of the thing that there
is no disease in the body and it is hundred percent free from diseases.
सुबह के समय उठने पर शरीर में पर्याप्त स्फूर्ति, उत्साह
और ताजगी होना भी शरीर की स्वस्थता को प्रदर्शित करता है।
There should be ample activeness, zest andfreshness in the body at the time of awakening in the morning. This thing shows
the good health of a person.
शरीर में किसी भी प्रकार के रोग के सम्बंध में कोई
जानकारी अथवा वेदना का अनुभव नहीं होना चाहिए।
A person should not feel any kind of
symptom of any disease and pain in the body.
वह व्यक्ति जो कार्य करते समय कार्य और विश्राम के
समय विश्राम करता है उसका शरीर भी पूर्णरूप से स्वस्थ होता है।
The man is fully healthy who works at the
time of working and rests at the time of rest.
जो व्यक्ति सहनशील, कठिन से कठिन काम से न
घबराने वाला, स्वतंत्र विचार रखने वाला, अध्यवसायी, दृढ़
प्रतिज्ञ, आत्मविश्वासी,
हंसमुख, सुंदर, दयावान, आत्मोल्लास से परिपूर्ण, मेधावी, बलवान, दीर्घजीवी और विनयी होता है वह शारीरिक और मानसिक
दोनों में पूर्ण रूप से स्वस्थ होता है।
A man who is studious, self dependent,
jolly, beautiful, kind, gay, and intelligent or who bears everything with
patience and does not become nervous while doing hard task is healthy both
mentally and physically.
जिन लोगों की त्वचा मुलायम, चिकनी, लचीली, स्वच्छ
और गर्म हो तथा खुजलाने से त्वचा में लकीरे न बनती हो, उन
लोगों का स्वास्थ्य भी निरोग रहता है। रोमकूपों के स्थान सघन, सुंदर
और मुलायम बालों से भरे हों तथा जिसके पसीने में किसी प्रकार की बदबू न आती हो।
जाड़े, गर्मी तथा बरसात आदि सीजनों को सहने में सक्षम
व्यक्ति भी पूर्ण रूप से स्वस्थ होता है।
All the people whose skin is soft, tender,
smooth, clean, and hot and no line appear on the skin by scratching have sound
health in true sense. Portion of the hair’s skin is numerous, beautiful, soft
and covered with hair and sweat is without bad odor are the symptoms of good
health. The man who bears summer, winter and rainy season without problem has
good health.
लोगों के मुखमंडल की त्वचा की और होठों पर
आत्मविश्वास की झलक होना भी स्वस्थता की निशानी होती है।
Skin of the face and gleam of self
confidence on the lips are the symptoms of good health.
पूर्ण रूप से स्वस्थ व्यक्ति की आंखे चमकीली, स्वच्छ, नाक
की ओर आंख के कोनों में कुछ लालिमा होती होती है तथा उसकी आंखे डबडबाई हुई और लाल
नहीं होती हैं।
Bright eyes, clean nose, little redness
towards the root of the nose are the symbols of good health. There is no
redness in the eyes of a healthy person.
स्वस्थ व्यक्ति की जीभ चिकनी, गुलाबी, समतल, स्वच्छ
और शीतल होती है।
स्वस्थ व्यक्ति के दांत स्वस्थ और मजबूत तथा मोती के
समान साफ और चमकदार होते हैं।
Tongue of a healthy person is smooth, pink,plain, clean and cold. Teeth are strong, healthy and shiny and they appear like
pearl.
शरीर
की नसों में उभार का न होना स्वास्थ्य का प्रतीक होता है।
Lack
of the swelling veins is the symbol of sound health.
पूर्ण रूप से स्वस्थ व्यक्ति के मुंह का स्वाद अच्छा
होता है तथा बार-बार थूकने और खंखारने की आदत नहीं होती है।
Taste of the mouth of healthy person is
good and he has no habit of expectoration and spitting.
स्वस्थ व्यक्ति के शरीर के सभी अंग अपना कार्य सुचारू
रूप से करने वाले होते हैं तथा उसके नाखून गुलाबी रंग के पैरों के तलवों से
मिलते-जुलते हैं।
All the organs of the body work properly if
health is good. Nails are pink and resemblance with the color of the soles.
स्वस्थ व्यक्ति की गर्दन गोल और सीधी होती है वह न
अधिक लम्बी और न ही एकदम घुसी हुई होती है।
Neck of a healthy person is round and
erect. It is neither too long nor too small.
सोते समय मुंह का बंद होना और हृदय की धड़कन सामान्य
तथा सांस का दुर्गंध रहित होना व्यक्ति के पूर्ण रूप से स्वस्थ होने का लक्षण होता
है।
Closed mouth, normal throbbing andbreathing without stinking breath are the symptoms of sound health.
स्वस्थ
व्यक्ति की नींद गहरी, लम्बी और बिना किसी स्वप्न के होती है।
A
health person sleeps for long time soundly without dreams.
भोजन करने के बाद पेट में गुड़गुडाहट का न होना और पेट
का भारी होकर आलस्य का अनुभव न होना और पाचनशक्ति का ठीक होना स्वस्थ होने के
लक्षणों में आते हैं।
No rumbling sound in the stomach after the
meal, no sensation of idleness with heavy stomach and good digestion power are
the symptoms of sound health.
शारीरिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति का पेशाब बिना किसी
कष्ट के आसानी से होता है तथा हल्की गर्मी लिए हुए पीले रंग का गंधहीन पेशाब तेजी
के साथ बाहर निकलता है।
A healthy person urinates without problem.
Urine has a little heat, paleness and without stinking breath.
प्रतिदिन शौच का दो बार साफ होना और मल का गुदा द्वार
पर न चिपकना स्वस्थ व्यक्ति की निशानी होता है तथा मल निर्गंध और न अधिक कठोर और न
अधिक पतला होता हो।
If a person evacuates stool twice a day and
stool does not stick on the anus, he is quite healthy. The stool should neither
too much hard nor too much watery.
स्वस्थ व्यक्ति को न तो प्यास अधिक प्यास लगती है और
न ही कम। शुद्ध और ताजे जल का सेवन करने से प्यास बुझ जाती है और शांति प्राप्ति
होती है।
A healthy person feels too much or less
thirst. Thirst ends after the use of cold and clean water and the person feels
calmness.
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